Chhand Kise Kahate Hain- छन्द के भेद उदाहरण सहित (दोहा, सोरठा, चौपाई, रोला, हरिगीतिका, बरवै, इतिहास)
जिस शब्द-योजना में वर्णों या मात्राओं और यति-गति का विशेष नियम हो, उसे छन्द कहते हैं। छन्द को पद्य का पर्याय कहा है। विश्वनाथ के अनुसार ‘छन्छोबद्धं पदं पद्यम्’ अर्थात् विशिष्ट छन्द में बंधी हुई रचना को पद्य कहा जाता है। छन्द ही वह तत्व है, जो पद्य को गद्य से भिन्न करता है।
छन्द के भेद
वर्ण और मात्रा के विचार से छन्द के चार भेद है-
(1) वर्णिक छन्द
(2) वर्णिक वृत्त
(3) मात्रिक छन्द
(4) मुक्तछन्द
दोहा
अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बाल पतंग ।
बिहँसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग ।।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ।।
मीठी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।।
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय।
जा तन की झांई परे, स्यामु हरित-दुति होय।।
सोरठा
अर्ध सम मात्रिक छन्द है, इसमें 48 मात्राएं होती है। इसके प्रथम तथा तृतीय चरणों (विषम चरणों) में से प्रत्येक चरण में 11-11 मात्राएं एवं दूसरे और चौथे (सम) चरणों में से प्रत्येक चरण मे 13-13 मात्राएं होती है।
“जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल, मूल बाम, अंग फरकन लगे।।”
“जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥”
चौपाई
यह मात्रिक सम छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएं होती है।
“निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं।।
बड़े भोर भूपतिमनि जागे।
जाचक गुनगन गावन लागे ।।
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”
रोला
यह मात्रिक सम छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं। इसके प्रत्येक चरण में ११ और १३ मात्राओं पर यति ही अधिक प्रचलित है। प्रत्येक चरण के अन्त में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते हैं। दो-दो चरणों में तुक आवश्यक है। उदाहरणार्थ-
“जो जगहित पर प्राण निछावर है कर पाता।
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता ।।”
“नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है। सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है। बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।।”
हरिगीतिका
यह मात्रिक सम छन्द है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में २८ मात्राएँ होती हैं। १६ और १२ मात्राओं पर यति तथा अन्त में लघु-गुरु का प्रयोग ही अधिक प्रचलित है। उदाहरणार्थ-
कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ।।
बरवै
यह मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। इस छन्द के विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में १२ और सम चरणों (दूसरे और चौथे) में ७ मात्राएँ होती है। सम चरणों के अन्त में जगण या तगण आने से इस छन्द में मिठास बढ़ती है। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है। जैसे-
वाम अंग शिव शोभित, शिवा उदार।
सरद सुवारिद में जनु, तड़ित बिहार ।।
छंद का इतिहास
प्राचीन काल के ग्रंथों में संस्कृत में कई प्रकार के छन्द मिलते हैं जो वैदिक काल जितने प्राचीन हैं। वेद के सूक्त व ऋचाएँ भी छन्दबद्ध हैं। महर्षि पिंगल द्वारा रचित छन्दशास्त्र इस विषय का मूल ग्रन्थ है। छन्द पर चर्चा सर्वप्रथम ऋग्वेद में हुई है।