Pollution Essay in Hindi (प्रदूषण पर निबंध for Class 6, 7, 8, 9, 10) प्रदूषण के प्रकार-

देश में विज्ञान की प्रगति के साथ जैसे-जैसे विकास की गति तेज हुई है, वैसे-वैसे बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण के कारण वायु, जल आदि दूषित होते चले जा रहे है। विभिन्न प्रकार के यातायात के साधनो ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है जिससे ध्वनि प्रदूषण के विषय में भी अब जोर-शोर से चर्चा होने लगी है। वैज्ञानिको का विचार है कि बढ़ते प्रदूषण के कारण ही मनुष्य में अनेक भयंकर बीमारियाँ हो रही है। जल-प्रदूषण तो इतना बढ़ गया है कि ‘ गंगा तेरा पानी अमृत ‘ भी अब हास्यपद लगने लगा है।

प्रदूषण का अर्थ

प्रदूषण का सीधा-सादा अर्थ वातावरण के दूषित होने से है। मानव को जीवित तथा स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ वातावरण का होना बहुत आवश्यक है और स्वच्छ वातावरण का मतलब है साफ़ हवा तथा पानी । जब किन्ही कारणों से यह हवा पानी हानिकारक होने लगता है तो उसे वातावरण प्रदूषण कहते है।

प्रदूषण के प्रकार-

आज विश्व में विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ निरन्तर चलती देखी जा सकती है। इन गतिविधियो

ने मानव जीवन को कई प्रकार से प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है अतः वातावरण में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण बढ़ते जा रहे है। कुछ मुख्य प्रदूषण इस प्रकार है –

वायु प्रदूषण –

मानव जीवन के सबसे प्रमुख तत्वों में से एक है – ऑक्सीजन  । इसके बिना तो पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनुष्य तथा अन्य सभी प्रणियो को स्वच्छ ऑक्सीजन मिलना बहुत आवश्यक है किन्तु  बढ़ते औद्योगीकरण तथा यातायात ने कार्बन का अधिक मात्रा में उत्सर्जन कर वातावरण में में उपस्थित ऑक्सीजन को को साँस लेने लायक  नहीं छोड़ा है। वृक्ष ऑक्सीजन के स्त्रोत है और मनुष्य अपनी आवश्यकताओ के लिए वृक्षों को काटता जा रहा है, इससे भी ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है। मिलो के द्वारा भी कार्बन डाई-ऑक्साइड वातावरण में घुलती जा रही है। विभिन्न प्रकार की गैसों के कारण ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती जा रही है। कोयले, डीजल, पैट्रोल आदि वीभिन्न पदार्थों, तेलों के जलने से सल्फर की मात्रा ऑक्सीजन में घुलकर नासिका में जलन पैदा करती है और अनेक वायरल बीमारियाँ मनुष्य को होने लगती है। शोध से पता चलता है की ऐसी गैसे मनुष्य के साथ -साथ प्राचीन इमारतों को को भी हानि पहुँचाकर उनकी क्षति कर रही है।

आज वायु में सीसा, कैडमियम, नाइट्रोजन-ऑक्साइड सल्फर डाई-ऑक्साइड आदि विभिन्न पदार्थ तथा गैसे घुलकर मानव जीवन को खतरा उत्पन्न कर रही है। इनसे मनुष्य में कैंसर, दमा, आँखों संबंधी विभिन्न प्रकार के रोग बढ़ते जा रहे है और तो और यह हमारे वायुमण्डल की ‘ओजोन’ परत के कमज़ोर होने से सूर्य की किरणे पृथ्वी पर सीधे आती है और ताप बढ़ने से लेकर कई आँख सम्बन्धी रोग पैदा करती है।

जल प्रदूषण

कहा जाता है- ‘जल ही जीवन है’ किन्तु आज यह जल भी हमारे पीने योग्य रहा है। मनुष्य ने अपनी बढ़ती महत्वाकांक्षा से इस जल को भी प्रदूषित कर दिया है। इसमें अनेक खनिज तत्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसे विद्यमान है जो जल की शुद्धता को कई प्रकार से प्रभावित कर रही है।

आज हमारी सभी नदियाँ भी जल प्रदूषण की चपेट में है। उद्योगों रासायनिक कचरा, नगरों का मलमूत्र सभी इन नदियों में बहाया जा रहा है। अनियोजित विकास, सफाई तथा शोधन तंत्रो के कम तथा उच्च मानक न होने के कारण ये नदियाँ अपने अंदर सभी प्रकार की गंदगी समेटे बहती है। नदियों के इस जल से हमारा पृथ्वी के नीचे का जलभण्डार भी दूषित हो रहा है, जिससे आज नलों में कीड़े निकलने की बाते सुनाई दे रही है।

‘केन्द्रीय जन-स्वास्थ्य इंजीनियरिंग अनुसन्धान केंद्र’ तथा ‘जल-प्रदूषण बोर्ड’ का गठन इसी जल प्रदूषण की समस्या से जूझने हेतु किया गया है। आज नदियो की सफाई पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। आँकड़ो के अनुसार जल प्रदूषण से एक लाख व्यक्तियों में 360 व्यक्तियों की मृत्यु आन्त्र शोथ (दस्त, पेचिश, टाइफाइड आदि) से हो रही है। शुद्ध-जल आज दुर्लभ होता जा रहा है।

ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण का अर्थ – आवाजों का शोर। आधुनिक जीवन शैली में मोटर वाहन सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण फैला रहे है। सड़को पर वाहनों की लम्बी-लम्बी कतारे हर स्थान पर देखी जा सकती है जो निरंतर हॉर्न बजाकर आगे निकलने की चेष्टा करते दिखते है। सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण तो शादी तथा देवी के जागरण में डी.जे. के द्वारा उत्पन्न तीव्र ध्वनियों के कारण बहरापन तो होता है। कमज़ोर हृदय वाले इंसानो में हृदयघात की बीमारिया हो जाती है। इसकी ध्वनि-चोट तो सीधे दिल पर हथौड़े की तरह लगती है। अधिक तेज ध्वनियाँ मानव में अनिद्रा, बहरापन आदि बीमारियाँ उत्पन्न करती है।

रेडियोधर्मी-प्रदूषण

विज्ञान ने विभिन्न प्रकार की ऊर्जा निर्मित कर दी है, जिनमे परमाणु ऊर्जा एक विशेष प्रकार की ऊर्जा है। इसमें बहुत तीव्र रेडियोधर्मी तरंगे निकलती है संचार माध्यम भी इन रेडियोधर्मी किरणों के बहुत बड़े जनक है। इनके बड़े-बड़े टॉवरों से निरंंतर संचार-तरंगे निकलती रहती है। इंटरनेट के विस्तार ने तो और भी अधिक तीव्रता, सघनता इन तरंगो में ला दी है जिससे वातावरण इन रेडियोधर्मी किरणों से हर समय भरा रहता है। ये तरंगे परस्पर टकराती रहती भी है और एक विशेष प्रकार की ऊर्जा का उत्सर्जन भी करती है जिससे वातावरण की वायु तो दूषित होती है सारा आकाश पृथ्वीमण्डल भी इसके चपेट में आ जाता है। इससे भी भयानक बीमारियाँ आधुनिक मानव में देखी जा रही है।

रासायनिक प्रदूषण

पैदावार बढ़ाने के लिए किसान निरंतर फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव करते है। उनकी जड़ो में यूरिआ, फास्फोरस आदि रासायनिक उर्वरक डालते है इनसे भी हमारी मर्दा (मिट्टी) विभिन्न तरीके से प्रभावित होकर खाद्य-पदार्थो को दूषित रूप में उत्पन्न कर देती है। जब हमारे खाद्य पदार्थ ही दूषित होंगे तो फिर हम ही स्वस्थ कैसे रह सकते है।

पर्यावरण सुरक्षा

इन विभिन्न प्रकार के से बचने के उपाय निरंतर किये जा रहे है। सरकार ने ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ तथा ‘जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण नियम’ सन् 1974 गठित कर इस दिशा में में पहल की है। नदियों की सफाई के लिए विशेष अभियान चला रखा है। वनों की अन्धाधुन्ध कटाई पर रोक लगाईं है तथा अधिक वृक्ष लगाने हेतु जन सामान्य को जागरूक किया है। शहरो में पार्क, हरित पट्टी के लिए स्थान नियत किये गए है। ध्वनि विस्तारक यंत्रो का मानकीकरण कर उन्हें अत्याधुनिक रूप से किया गया है।

उपसंहार

सरकार द्वारा प्रदूषण को करने के उपायों के अतिरिक्त प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है की वह स्वंय प्रदूषण की गंभीरता को समझे तथा अपने स्तर से कम-से-कम प्रदूषण फैलाए। भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वच्छ हवा-पानी बचाना हम सभी नागरिको का धर्म है। आओ हम सब इसके लिए स्वंय संकल्प ले तथा दूसरो से भी कराएँ- ‘जन-जन की है यही पुकार, कभी न हो हम बीमार’।

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